googlea2c07d1826884cd8.html googlea2c07d1826884cd8.html स्वामी विवेकानन्द जीवन - परिचय in Hindi - Lifestyle

Header Ads

स्वामी विवेकानन्द जीवन - परिचय in Hindi

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय हिंदी में \ Swami Vivekanand Biography In Hindi


अपने अन्दर सारा ज्ञान रखने वाले एक महान पुरुष जो हमेशा से शिक्षा को प्रथम स्थान देते थे , जिन्हे उनकी प्रकोष्ठ बुद्धि , के लिए जान जाता है , आज हम उसी महान व्यक्ति की बात कर रहे है , जिन्होंने सदैव लोगो की भलाई की वे सदैव असहाय लोगो की मदद के लिए तात्पर्य रहते थे | वो महान पुरुष स्वामी विवेकानंद जी है , जो एक भारतीय व्यक्ति थे , जो सदैव एक साधारण जीवन जीना पसंद करते थे , वो उनके अन्दर सदैव कुछ न कुछ सिखने की जिज्ञासा रहती थी , स्वामी विवेक नन्द की आर्थिक स्थिति ठीक थी , लेकिन फिर भी वो बहुत ही साधारण जीवन अपनाते थे , उन्होंने कभी भी खुद को बड़ा होने का दिखावा नही किया , वो एक बुद्धिमान व्यक्ति थे , ऐसा कहाँ जाता है की , स्वामी विवेकानंद जी एक विद्वान् के रूप में प्रसिद्द थे | उन्हें बहुत से विषयों में उच्च ज्ञान प्राप्त था |

   इसे भी पढ़े -   शाहजहाँ का जीवन परिचय

                 प्रारंभिक - जीवन 

भारत के प्रकोष्ठ और बुद्धिमान विद्वानों में एक स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 ई. को गौर्मूहन मुखर्जी स्ट्रीट कोलकाता में हुआ था , इनके जन्म दिवस को "युवा दिवस " के रूप में मनाया जाता है |  स्वामी विवेकानंद जी एक उच्च परिवार से थे || इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त जी एक प्रसिद्द वकील थे | जन्होने शिक्षा को सर्वोपरि माना जिसका प्रभाव स्वामी विवेकानंद जी पर भी पड़ा | इनकी माता जी का नाम श्री मति भुवनेश्वरी देवी था , जो की एक गृहणी थी और साथ ही वो एक एक बुद्धिमान होने के साथ एक धर्मपरायण स्त्री भी थी , इसी कारन से स्वामी विवेकानंद जी ने हिन्दू धर्म को इतना महत्त्व दिया | विवेकानंद जी के बचपन का नरेंद्र दास दत्त था | स्वामी विवेकानन्द जी ने पुरे विश्व को भारत की संस्कृति धर्म के मूल आधार और नैतिक मूल्यों से भी परिचय कराया |  स्वामी विवेक नन्द जी एक  ज्ञानी व्यक्ति थे , इन्होने अमेरिका और यूरोप में हिन्दू आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार - प्रसार भी किया है ! स्वामी विवेकानंद जी के पिता पश्च्यात संस्कृत में विश्वास रखते थे , उन्हें संस्कृत में बहुत ही ज्यादा ज्ञान था , और अन्य विषयों  में उनकी रूचि कम थी , इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र स्वामी विवेकानंद जी को अंग्रेजी भाषा और अन्य विषयों का ज्ञान दिलवाना चाहते थे | लेकिन कभी भी स्वामी विवेकानंद जी का अंग्रेजी में मन ही नही लगा | स्वामी विवेकानंद जी बचपन से ही अपनी माता जी के से महाभारत जैसे पुरानो के कहानिया सुनते थे , और जिसका असर उनपर बहुत ही ज्यादा पड़ा , वो हमेशा  भक्ति  में लीन रहते थे , एक बार वो अपने घर में ध्यान में इतने लीं थे , की उनके घर के सदस्यो ने उनको बहुत बुलाया लेकिन उन्होंने नही सुना , तत्पश्चात उन्हें जोर - जोर से हिलाने लगे तब जाकर उनका ध्यान टुटा  |

सर्वप्रथम वे गुरु रामकृष्ण जी से मिले तब वे एकदम साधारण जीवन जीते थे , लेकिन कुछ समय उनके साथ व्यतीत काटने के बाद स्वामी विवेकानंद जी केअन्दर उनके गुरु रामकृष्ण जी ने ज्ञान की ज्योति जलाई  | गुरु रामकृष्ण जी के द्वारा कहने पर स्वामी विवेक्नानंद जी अमेरिका गये और उन्होंने शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में एक बहुत ही अनोखा भाषण की शुरुआत अपने शब्दों में " मेरे अमेरिकी भाइयो व बहनों " से की जिसके बाद वो बहुत ही प्रसिद्द हो गये |  


स्वामी विवेकानंद जी ने 25 वर्ष की आयु अपना घर छोड़ने का निर्णय लिया , वो सन्यासी बन गये !  1885 विवेकानंद जी के गुरु रामकृष्ण जी की मृत्यु हो गयी , तत्पश्चात स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण संघ की स्थापना की | जिसका नाम रामकृष्ण  मठ , रामकृष्ण मिशन हुआ | 


स्वामी जी के द्वारा  युवाओ के लिए कुछ  कहे गये अनमोल वचन - 

  • हम ऐसी शिक्षा चाहते है , जिससे चरित्र निर्माण हो , मानसिक शिक्षा का विकास हो जिससे हम खुद के पैरो पर खड़े हो सके | 
  • शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति का स्वर्नागिर्ण विकास होता है | 
  • तुम्हे कोई पढ़ा नही सकता कोई अध्यात्मिक नहीं बना सकता , तुमको सब खुद अपने अन्दर से सीखना है , आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नही है | 
  • खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है | 
  • सत्य को हजार तरीके से बताया जा सकता है , फिर भी हर एक सत्य ही होगा | 
  • उठो जागो और तब तक न रुको जब तक तुम अपने लक्ष्य को न प्राप्त कर लो | 
  • दिल और दिमाग के टकराव में हमेशा दिल की सुनो |
  • जब तक आप खुद पर विश्वास नही करते तब तक आप भगवन पर भी विश्वास नही कर सकते | 
  • चिंतन करो चिंता नही , नए विचारो को जन्म दो |!

स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु : - 

स्वामी विवेकानंद जी बेलूर  मठ में रहते थे , वे छात्रो को भी वहां पढ़ाते थे , 4 जुलाई 1902 ई. को संध्याकाळ में विवेकानंद जी अपने छात्रो को पढ़ने के बाद योग करने गये , तभी उनके छात्र शोर करने लगे स्वामी जी ने उन्हें शांति - भंग करने के लिए कहा , और जाकर ओय्ग करने लगे उसी दौरान 39 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकनद जी इस संसार से हमेशा के लिए विदा हो गये !
























कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.