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डॉ . भगवत शरण उपाध्याय का जीवन परिचय

                             डॉ. भगवत शरण उपाध्याय जी का जीवन - परिचय 


 हिंदी साहित्य के प्रसिद्द उन्नायक , निरंतर हिंदी - साहित्य की साव करने वाले श्री भगवत शरण उपाध्याय जी का जन्म 1910 ई. को उत्तर - प्रदेश के बलिया जिले उजियारीपुर नमक गाँव में हुआ था | उपाध्याय जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वाही से पूर्ण की , तत्पश्चात इन्होने बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय से प्राचीन इतिहास विषय से एम. ए. किया | उपाध्याय जी नेभारत के प्राचीन इतिहास और भारतीय संस्कृति का विशेष अध्यन भी किया है | ये  में पुरातत्व बिभाग , लखनऊ संग्रहालय , और प्रयाग संग्रहालय के अध्यक्ष और पिनाली विदला महाविद्यालय में प्राध्यापक पद भी कार्यरत रहे | फिर बाद में इन्होने विक्रम विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग में प्रोफेषर एवं अध्यक्ष पद पर पर कार्य करने के बाद अपना नया  निवास - स्थान देहरादून में बना लिया | ये संस्कृत साहित्य तथा पुरातत्व के सामर्थ्य अध्येता एवं हिंदी - साहित्य के प्रसिद्द उन्नायक भी रह चुके है | ये मारीशाश में भी भाररत के प्रतिनिधि के रूप में कार्यरत थे , | भगवत जी ने बहुत बार चीन , अमेरिका , आडिय युरोपीय  देशो का भी भ्रमण किया है , जहाँ पर इन्होने भारतीय - संस्कृति और साहित्य पर बहुत ही विशेष व्याख्यान दिए है | इन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने का सतुटी प्रयास किया , जिसके लिए इन्होंने सौ से भी ज्यादा पुस्तके लिखी है | भारत के विशेष अद्येता एवं व्याख्याता होते हुए भी  रुढ़िवादी और परस्वदिता से हमेशा ऊपर रहे , यही इनकी प्रमुख विशेषता है | ये विशेष रूप से अपने स्वतंत्र अधिकारों और विचारो के लिए प्रसिद्ध है | हिंदी के इस महँ ज्ञाता ने 1982 ई. को देश को हमेशा  - हमेशा के लिए अलविदा कह दिया | 



          डॉ. भगवत शरण उपाध्याय 



साहित्यिक - परिचय - डॉक्टर जी ने आलोचना . यात्रा - साहित्य , पुरातत्व ,संस्मरण और  रेखाचित्र आदि पर प्रचुर मात्र में साहित्यिक का चित्रण भी  क्या है | उपाध्याय जी की रचनाओ में इनके गहंह अध्ययन और विद्द्वात्ता का स्पष्ट छाप मिलता  है | इनमे वीवेचन और तुलना करने की क्षमता विद्यमान थी , ये कठिनी इ कठिन भाषा को सरल भाश में प्रस्तुत करते थे , यही  इनकी सबसे बड़ी विशेषता थी | उपाध्याय जी ने अपनी योग्यता के कारण भारतीय साहित्य और संस्कृति की सभि प्रमुख विशेषताओ को स्पष्ट किया है ! 


साहित्यिक भाषा - डॉ. उपाध्याय जी ने अपनी सभी याचनाओ में शुद्ध  , परिमार्जित कड़ी बोली का प्रयोग किया है | इनकी शैली तथ्यों के निरूपण से उक्त , कल्पनामई एवं सजिवी है , अक्सर इनके रचनाओ में विवेचनात्मक , भावात्मक ,और वर्णात्मक शैलिया देखने को मिलती है ! 

रचनाये - इतिहास " खून के छीटे " इतिहास के पक्षों पर " प्राचीन भारत का इतिहास " आदि | 

आलोचना - " विश्व साहित्य की रूपरेखा " " सहित और कला आदि " | 



















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