कबीरदास जी का जीवन - परिचय
कबीरदास जी का जीवन - परिचय हिंदी में -
भक्तिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक , कृष्णा साधना में लीन कविरदास जी का जन्म 1938 ई. को काशी में हुआ था | कवीर दास जी का लालन - पालन नीरू तथा नीमा नामक जुलाहे दंपत्ति ने किया था | कवीर जी बचपन से ही धार्मिक प्रकृति के व्यक्ति थे , हिन्दू भक्ति धारा की और इनका झुकाव बचपन से ही था | युवा होने पर कवीरदास जी का विवाह "लोई " नमक सती के साथ हो गया | कवीर और लोई के "कमाल ' और "कमाली " नमक दो संताने उत्पन्न हुई | कबीर जी ने अपना ज्यादा से ज्यादा समय काशी में ही व्यतीत किया , कबीर दस जी एक संत थे , लेकिन वे अपने पारिवारिक जीवन के कर्तव्यों को कभी भी उपेक्षा नही करते थे | कबीर दास जी ने परिवार का भरण - पोषण करने के लिए जुलाहे का काम भी किया , और जीवन भर इसी धंधे में लगे रहे | अपने इस व्यवसाय में प्रयुक्त होने वाले चरखा , ताना वना , भरनी पुनि का भी इन्होने प्रतीतात्मक प्रोयग अपने काव्य में किया है |
साहित्यिक - परिचय -
कबीर दस जी ज्यादा पढ़े लिखे व्यक्ति नही थे , उन्होंने अपनी कविता खुद के लिए "मसि कागद छुयो नहीं , कलम गहि नही हाथ "कहकर इस तथ्य की पुष्टि की हुई है | सत्संग एवं भ्रमण द्वारा अपने अनुभूत ज्ञान को अद्भुत काव्य प्रतिभा से कवीर जी ने अभिव्यक्ति प्रदान की है | इन्होने सत्संग और भ्रमण द्वारा अपने अनुभुत ज्ञान को अद्भुत काव्य - प्रतिभा द्वारा अभिव्यक्ति भी प्रदान की थी , और साथ ही हिंदी साहित्य की निर्गुण पासक ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवी के रूप में मानी हुए |
कवीर जी ने रामानंद स्वामी से दीक्षा ली थी , कुछ लोग इन्हें सूफी फ़क़ीर सेख तकी का शिष्य भी मानते है , लेकिन श्रद्धा के साथ कवीर जी ने स्वामी रामानंद जी का नाम लिया है , इससे यह स्पष्ट है , की " स्वामी रामानंद जी " ही कबीरदास जी के गुरु थे |
मृत्यु -
कबीर दास जी ने सुना था , की " काशी में मरने के पश्चात् मोक्ष की प्राप्ति होती है , इसीलिए ये इस अन्धविश्वास को मिटने के लिए अपने जीवन के अंतिम समय में मगहर चले गये थे | वहां पर इन्होने 1495 ई. में अपने जीवन की आखिरी साँस ली |
रचनाये - कवीर दास जी की रचनाये (1) साखी (2) संवद (3) रमैनी " है | ये पढ़े लिखे नही थे , इसलिए जो जो ब्लोते इनके शिष्य धर्मदास जी लिख लेते थे , जो बाद में सम्पादित भी हुई |
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