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राहुल सांकृत्यायन का जीवन - परिचय


राहुल संकृत्यायन जी का जीवन - परिचय हिंदी में 


हिंदी के के प्रमुख साहित्यकार , बहुमुखि प्रतिभा के धनि हिंदी साहित्य में अपना पूरा जीवन समर्पण करने वाले हिंदी में महा पांडित प्राप्त ऐसे साहित्यकार राहुल सांकृत्यान जी का जन्म अप्रैल 1893 ई. को उत्तर - प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पन्दहा नामक ग्राम में हुआ था , ये हिंदी जगत में एक प्रसिद्द रचनाकार , और साहित्यकार के रूप में प्रसिद्द है , इन्हें हिंदी साहित्य का पितामह भी कहा जाता है ! इन्होने अपने जीवन में बहुत से उतर - चढाव देखे है , ये अमीर घर से तो नहीं थे , लेकिन इनके विचार बहुत ही अमीर थे |  एक ऐसे साहित्यकार थे , शायद ही आज कोई इनके जैसा हो , इन्हें न ही हिंदी बल्कि  बहुत सी भाषाओ का पूर्ण ज्ञान है , इन्होने भारत के आलावा एनी देशो की यात्रा भी की थी | ये एक शेर से प्रभावित थे , जिसके कारण इन्होने अपना नाम प्रसिद्द किया , राहुल जी आज भी न ही भारत बल्कि अन्य  देशो में भी एक प्रसिद्द साहित्यकार के रूप में जाने जाते है ! 


प्रारंभिक जीवन :-

राहुल सांकृत्यान जी का जन्म अप्रैल 1893 ई. को उत्तर - प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पन्दहा नामक ग्राम में हुआ था |  इनके पिता जी का नाम श्री गोवर्धन पाण्डेय था , जो की एक कट्टर ब्रम्हण थे , तथा   इनके माता जी का नाम श्री मति कुलवंती पाण्डेय था जो की एक गृहणी थी  | इनका मूल नाम केदार पाण्राडेय था ,  इन्होने श्रीलंका में जाकर बौध धर्म  स्विकार कर लिया तह , इसीलिए इनका नाम केदार पाण्डेय से राहुल सांकृत्यान हो गया | राहुल सांकृत्यायन जी हिंदी में यात्रा साहित्य के प्रवार्ताक्क माने जाते है | इनकी कृतिया हिंदी साहित्य में एक अनुपम निधि है , अगर ध्यान की बात करे तो इनका अध्यन बहुत ही व्यापक था , लेकिन साहित्य सृजन बहुत ही प्रभावशाली था | हिंदी साहित्य में इनकी प्रतिभा के अनेक रूप है !इनके  बचपन में ही इनकी माता जी का देहांत हो हुआ था , इनका लालन - पोषण इनके नाना और नानी जी के द्वारा किया गया था | इनके नाना जी भारतीय सेना में थे |  इनकी प्रारंभीक शिक्षा इनके गाँव के मदरसे से हुई , बचपन से ही इन्होएँ बहुत सी मुसीबतों का सामना किया , ये हींदी  , गुजरती , मराठी , कन्नड़ अंग्रजी आदि कुल 36 भाषाओ के ज्ञाता थे  |


राहुल संकृत्यायन की शिक्षा :-

राहुल सांकृत्यायन जी ने केवल कक्षा 10 तक की ही पढाई की है , इनके पिता जी चाहते थे की , ये उच्च शिक्षा प्राप्त करे लेकिन , इनका मन पढाई में नहीं लगता था , इसीलिए इन्होने अपनी पढाई छोड़ दी | इन्होने अपनी प्ररम्भिक शिक्षा निजामाबाद से उर्दू मिडिल परीक्षा पूर्ण की | उसके बाद इन्होने बरनासी से संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की | 


राहुल सांकृत्यायन जी के जीवन में बदलाव : - 

राहुल संकृत्यायन जी बचपन से ही अपने नाना जी के घर रहते  थे | इनके नाना जी भारतीय सेना में सिपाही थे , तथा वे इन्हें अपनी द. भारत की यात्राओ के बारे में इन्हें बताते थे , इसी कारण से इनके मन में यात्रा के प्रति प्रेम हुआ | इन्होने बहुत सी यात्राये की है , न ही भारत अपितु ये यूरोप , चीन , ईरान , रूस कोरिया , श्रीलंका , नेपाल , आदि देशो में भी यात्राये की है , और कुछ न कुछ नया सीखकर अंता में अपनी रचनाओ में भी सुशोभित किया है | इन्होने उर्दू की पुस्तक में एक प्रसिद्द शेर ,

" सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ,? 

जिंदगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ ,? 

सुना जिसके बाद इनके अन्दर घुमने की इच्छा जागृत हुई , और इस शेर को इन्होने अपना मूल मन्त्र बना कर सदैव अपने निर्धारित मार्ग पर चलते रहे  |

 

राहुल संकृत्यायन जी की मृत्यु :- 

हिंदी - साहित्यिक के इस महान रचनाकार , साहित्यकार राहुल संकृत्यायन जी का निधन अप्रैल 1963 ई. को हो गयी !


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